गणतंत्र दिवस, 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान को लागू किया गया और भारत एक संप्रभु गणराज्य के रूप में स्थापित हुआ. यह दिन हमें हमारे संविधान की ताकत और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान की याद दिलाता है. हमारा संविधान सिखाता है कि हमारा देश केवल स्वतंत्र ही नहीं है, बल्कि यह एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था है जो एकता और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है | आज इन सिद्धांतो कि दुर्दशा “आम” और “खास” मे पूरी तरह दृश्यमान है, हर ओर किसी सही गलत तरीके से खास बनने कि दौड़ लगी है क्योंकि जो खास है उनके लिए अलग माप दंड है, और आम के लिए अलग | रोज अखबारों मे छप रहा है कि किस प्रकार भूमाफियाओं से लेकर अपराधी तक राजनैतिक संरक्षण हांसिल कर रहे है, और दूसरी तरफ आम आदमी को कोई पूछने को भी तैयार नहीं है | यह आखिर हो क्यों रहा है ? इसका जवाब भी संविधान मे ही है, अधिकारों कि बात तो हर कोई करता है पर संविधान मे बताये हमारे कर्तव्यों अनुसार आचरण नहीं करना चाहता | यदि हम सभी नागरिक संविधान के अनुसार अपनी जिम्मेदारियों को समझें, ईमानदार रहे, डिगे नहीं और सच्चाई का अच्छाई का साथ देने को तत्पर रहें तो भ्र्ष्टाचार से लेकर बेरोजगारी तक सारी समस्याएँ दूर हो सकती है | सोचना चाहिए कि कैसे भ्र्ष्टाचारी पांच पांच सौ रुपये लेकर पासपोर्ट, आधार, लाइसेंस जैसे, महत्वपूर्ण कागजात बनाने मे कोई संकोच नहीं करते, ऊपर के पैसो को अपना हक समझते है और फिर जब इन्ही कागजो का गलत इस्तेमाल करके आतंकवादी और गद्दार देश और नागरिको को नुक्सान पहुँचाते है, क्या यह देशद्रोह नहीं ? क्यों सरकार देश कि अस्मिता और सुरक्षा से समझौता करने वाले इन भ्रष्ट अधिकारीयों पर NSA के तहत कार्यवाही नहीं करती है ? इनको बचाना ही इन्हे भ्रष्ट कार्यो के लिये उत्साहित करना है और इनके कुकर्मो की कीमत एक दिन नागरिको को चुकानी पड़ती है | पर जब मै, मेरा बीच मे आता है तो इंसान सारे कर्तव्य भूल जाता है और सोंचता है यही समय है जो मिले वो बटोर लेता हूँ, आदमी खुद को आश्वासन देता है कि जब सिस्टम ही ऐसा है तो मेरे अकेले के ईमानदार बनाने से कौन सा बदलाव आ जायेगा , समाज के इन अपराधियों और गद्दारो मे ज्यादा अंतर नहीं , बस यह दीमक देश को अंदर से खा रही है | सुभाषचंद्र बोस और गाँधी जी भी अकेले ही चले थे, जब एक ने अंग्रेजो के खिलाफ स्वराज मे आवाज उठाई और दूसरे ने वस्त्र त्यागे तो वो भी अकेले ही थे, पर बदलाव लेकर आये और देश को आज़ाद भी कराया , इसीलिए गणतंत्र को मानते समय हर देशवासी को खुद यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या हम अपने सभी कर्तव्यों का पालन कर रहे है ?? |
जयेश पाराशर : विज्ञान सूत्र के लिये राष्ट्रीय पर्व पर , जय भारत !!